गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

Rahim Das Ke Dohe in Hindi - रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित

Rahim Das Ke Dohe in Hindi - रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित
Rahim Das Ke Dohe in Hindi - रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित 

रहीम के दोहे अपने समय में सभी के पढ़े हुए है। लेकिन आज भी उनकी उपस्थिति दोहों के रूप में उतनी ही महत्वपूर्ण और उपयोगी है जितनी उनकी अपने समय में थी। रहीम जी के दोहे अनंत काल तक ऐसे ही सदा सबके जीवन में रोशनी भरते रहेंगे और मार्गदर्शन करेंगे।
जीवन परिचय-
पूरा नाम – अब्दुल रहीम खाने खाना
जन्म – दिसंबर 1556, लाहौर
मृत्यु – सन् 1627
पिता – मरहूम बैरम खाने खान
माता – सुल्ताना बेगम
प्रसिद्धि – कवि, विद्वान
रचनाएं – रहीम दोहावली, रहीम सतसई, मदनाश्टक, रहीम रत्नावली

रहीम जी के वालिद अकबर के संरक्षक थे। कहा जाता है रहीम जी के जन्म पर इनका नामकरण स्वयं अकबर ने किया था। यह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। एक ही समय में यह प्रशासक, आश्रयदाता, सेनापति, कूटनीतिज्ञ, दानवीर, कलाप्रेमी, कवि, विद्वान और बहुभाषी गुणों के प्रख्यात ज्ञानी थे।
यह सभी जातिवर्ण के प्रति समान भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे। रहीम जी भारतीय संस्कृति के सच्चे आराधक और मानवता के सूत्रधार थे। इतना ही नहीं रहीम जी तलवार और कलम के अच्छे धनी थे।
तो चलिए समय को ना गवाते हुए रहीम जी के कुछ चुनिन्दा दोहों को पढ़िए और समझिए। क्योंकि इनके दोहे चाय में चीनी की तरह है। जिस तरह थोड़ी सी चीनी पूरी चाय में मिठास का रस घोल देती हैं ठीक उसी तरह रहीम जी के दोहों में शब्दों की संख्या कम है लेकिन इनका महत्व, मर्म और जीवन का सार अनंत हैं।

रहीम के दोहे

Rahim Das Ke Dohe in Hindi - रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित 


1 दोहा – जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है अगर किसी बड़े को छोटा कह भी दिया जाए तो उससे उसका बड़प्पन कम नहीं होता। जैसे गिरधर को कान्हा कह भी दिया तो क्या गिरधर को बुरा लगेगा? नहीं, क्योंकि गिरधर की महिमा उनके नाम से कम नहीं होती।
2 दोहा – रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है संसार में प्रेम का धागा यानी रिश्ता बहुत ही नाज़ुक होता हैं। इसे जरा से झगड़े या मनमुटाव के कारण तोड़ना उचित नहीं। यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूटता है तो फिर इसे जोड़ना बहुत ही मुश्किल हैं और जैसे-तैसे अगर इस धागे को जोड़ भी दिया जाए तो इसमें अविश्वास की गाँठ पड़ जाती हैं।
3 दोहा – बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है व्यक्ति को अपने व्यवहार में वाणी का लेन-देन सोच समझकर करना चाहिए। क्योंकि किसी वजह से अगर बात बिगड़ जाती है तो उसे फिर से संभालना नामुमकिन होता है। जिस तरह दूध के फटने पर चाहे लाख कोशिश कर लो उसे मथकार मक्खन नहीं निकाला जा सकता।
4 दोहा – क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है बड़ों में हमेशा क्षमा का भाव होना चाहिए और छोटों में शरारत। कहने का तात्पर्य यह है छोटों की शरारत भी हमेशा छोटी ही होती है। इसलिए बड़े अपना बड़प्पन दिखाते हुए क्षमा करना सीखे। क्योंकि बड़ों के व्यवहार में क्षमा शोभा देती हैं। जैसे एक छोटा सा कीड़ा अगर लात मार भी दें तो उससे भला क्या क्षति होने वाली हैं।
5 दोहा – रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है किसी बड़ी वस्तु के मिल जाने से छोटी वस्तु को बाहर मत फेकिय। क्योंकि इससे छोटी वस्तु की कीमत कम नहीं होती। जहाँ सुई काम आ सकती है वहाँ बड़ी तलवार किसी काम की नहीं।
6 दोहा – तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है पेड़ स्वयं अपना फल नहीं खाता और ना ही नदी स्वयं अपना जल पीती हैं। ठीक इसी प्रकार सज्जन और अच्छे मनुष्य भी दूसरों के हित और कार्य के लिए धन का संचय करते हैं।
7 दोहा – रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि-फिरि पोइए, टूटे मुक्ताहार।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है जिस प्रकार कीमती मोतियों की माला के टूटने पर सभी मोतियों को इकट्ठा करके धागे में पिरो दिए जाते हैं। ठीक उसी प्रकार प्रियजन के सौ बार नाराज होने पर भी उन्हें मना लेना चाहिए।
8 दोहा – दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है कौआ और कोयल समान रंग के होते हैं। लेकिन जब तक उनकी आवाज सुनाई ना दे तब तक उनकी पहचान मुश्किल हैं। लेकिन जैसे ही बसंत का मौसम आता है दोनों के बीच का अंतर कोयल की मीठी और सुरीली बोली से दूर हो जाता हैं। तात्पर्य यह है समय आने पर इंसान की परख उसकी बोली से हो जाती है तब तक सब समान लगता हैं।
9 दोहा – खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है दुनिया आपकी खैरियत, अपराध, बीमारी, दुख-सुख, दुश्मनी, प्यार, बुरी आदत जैसी सभी बातों को भलीभाँति जानती हैं। इसलिए आप इस भ्रम में ना रहिए की आप किसी से कुछ छिपा सकते हैं।
10 दोहा – समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है समय का फेरा कभी एक जैसा नहीं रहता। जिस तरह समयनुसार पेड़ पर फल आते और झड़ते हैं। ठीक वैसे ही बुरी स्थिति में पछताने का कोई लाभ नहीं। क्योंकि यह स्थिति भी वक्त के साथ बदल जायेगी।
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11 दोहा – रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है बुरे और गिरे हुए मनुष्य के साथ ना तो दोस्ती अच्छी है और ना ही दुश्मनी। क्योंकि कुत्ते का काटना और चाटना दोनों ही घातक हैं।
12 दोहा – जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है इस शरीर को सब कुछ सहने की आदत होनी चाहिए। जिस तरह यह धरती सर्दी, गर्मी और बारिश अपने ऊपर सब कुछ सहन करती हैं। ठीक उसी प्रकार इस शरीर को भी सुख-दुख, अच्छा-बुरा सब कुछ धरती की तरह सहन करना आना चाहिए।
13 दोहा – एकहि साधै सब सधैए, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबोए, फूलहि फलहि अघाय।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है एक पर ध्यान देने से सभी का ध्यान संभव है। लेकिन सभी पर साथ ध्यान देने से सबके खोने की संभावना अधिक रहती हैं। ठीक वैसे ही जैसे पेड़ की जड़ को सींचने से फूल-फल, तना सभी भाग को पानी प्राप्त हो जाता है उन्हें अलग-अलग पानी देने की जरूरत नहीं पड़ती। कहने का अर्थ यह है व्यक्ति को भी अपने एक कार्य में ही पूरी साधना करनी चाहिए। क्योंकि कई कार्य एक साथ करने के चक्कर में सारे काम बिगड़ने की आशंका बनी रहती हैं।
14 दोहा – वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटन वारे को लगे, ज्यो मेहंदी को रंग।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है ऐसे लोगों का जीवन धन्य है जिनका संपूर्ण जीवन सदा दूसरों के परोपकार में गुजरा हैं। जिस तरह मेंहदी बेचने वाले के हाथ में रंग और खुशबू दोनों रह जाती हैं। ठीक इसी प्रकार परोपकारी व्यक्ति की अच्छाई सभी जगह महकती हैं।
15 दोहा – जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है जब छोटी सोच के लोग अचानक से अपने जीवन में तरक्की कर लेते है तो फूले नहीं समाते। जैसे शतरंज के खेल में किस्मत से जब प्यादा आगे बढ़कर रानी बन जाता है तो इतराते हुए टेढ़ी चाल चलने लग जाता है और यह भूल जाता है की मेरी पहचान एक प्यादे से हैं। जीवन में तरक्की आपकी बाधा नहीं बल्कि सोच आपकी रुकावट हैं।
16 दोहा – आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है इज्जत, आदर और आँखों का प्रेम तभी खत्म हो जाता है जब कोई किसी से कुछ माँग लेता हैं। इसलिए इतना इंतजाम जरूर करो जिससे बुरा समय निकल जाए और किसी के आगे हाथ ना फैलाना पड़े।
17 दोहा – रहिमन विपदा हु भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है समस्या कुछ दिनों की आए तो ही अच्छा हैं। क्योंकि ऐसे समय में ही दुनिया का पता चलता है की कौन अपना है और कौन पराया।
18 दोहा – देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरै, याते नीचे नैन।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है देने वाला तो वो ईश्वर है जो दिन रात हमें देता रहता हैं। लेकिन लोगों की मूर्खता की तो कोई हद नहीं, जो यह सोचते है की सब कुछ हम ही कर रहे हैं। आगे रहीम जी कहते है लोगों की इस मूर्खता और भ्रम को देखकर मेरी आँखें शर्म से झुक जाती हैं।
19 दोहा – रहिमन पानी राखिए, बिनू पानी सब सुन।
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।
अर्थ – रहीम जी ने इस दोहे में पानी शब्द का तीन बार उपयोग किया है जिसमें तीनों बार पानी का अर्थ अलग-अलग हैं। संसार और संसार की हर चीज के लिए पानी ही सब कुछ है क्योंकि पानी के बिना संसार कुछ नहीं। मोती का पानी यानी चमक बनाए रखना चाहिए नहीं तो उसकी कीमत कम हो जाती हैं। व्यक्ति को अपना पानी यानी मान-प्रतिष्ठा बनाए रखनी चाहिए। क्योंकि संसार में मान बिना इंसान की कोई पहचान नहीं और पानी यानी पीने के जल को व्यर्थ ना करे, क्योंकि अगर संसार से पानी गया तो हर जीव का जीवन भी समाप्त हो जायेगा।
20 दोहा – रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ।
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है मन की व्यथा आँसू द्वारा आँखों से झलक जाती हैं। लेकिन एक सत्य यह भी है जिसे घर से निकाल दिया जाता है वो घर की बातें यानी भेद दूसरों से कहकर ही अपने मन को हल्का करेगा। इसलिए अपना मन हल्का अपनों के साथ करे। इसके लिए दूसरों के कंधे का सहारा ना लें।
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21 दोहा – रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।
अर्थ – रहीम जी कहते है अपने मन की पीड़ा को अपने मन में ही दफन करके रखो। क्योंकि दूसरें का दुख सुनकर लोग उदास होकर इठला तो लेते है लेकिन पीछे से उसी का मजाक बनाते हैं। दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम है जो दूसरों के दर्द को कम करके उसका सहारा बनने का काम करें।
22 दोहा – चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कुछ नहीं चाहिये, वे साहन के साह।
अर्थ – रहीम जी कहते है जैसे ही व्यक्ति की चाह मिट जाती है तो उसकी चिंता का बोझ हल्का हो जाता है और मन हल्का होकर निश्चिंत हो जाता हैं। जो व्यक्ति सभी चाह को त्याग कर संतुष्टि धारण कर लेता है वो तो राजाओं का भी राजा बन जाता हैं। क्योंकि व्यक्ति से सारे अच्छे-बुरे कर्म यह चाह ही करवाती हैं।
23 दोहा – जे गरिब सों हित करें, ते रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।
अर्थ – रहीम जी कहते है जो लोग अपना पूरा जीवन गरीबों की सेवा में लगा देते है वो लोग संसार में बड़े महान होते हैं। जैसे सुदामा की गरीबी कृष्ण से मिलते ही दूर हो गई। ऐसी दोस्ती भी अपने आप में एक साधना हैं।
24 दोहा – पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।
अर्थ – रहीम जी कहते है वर्षा का मौसम आते ही मेरा और कोयल का मन चुप्पी धारण कर लेता है क्योंकि यह समय तो मेंढक के बोलने का होता है। फिर भला हमारी सुनेगा कौन? कहने का तात्पर्य यह है की कुछ अवसर ऐसा भी आता है जब गुणी व्यक्ति को चुप रहना पड़ता है। उस वक्त उनको कोई नहीं सुनना चाहता और ना ही कोई उनका आदर करता हैं। क्योंकि ऐसे कुछ अवसर में गुणहीन व्यक्ति का ही बोलबाला होता हैं।
25 दोहा – ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों।
तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै।
अर्थ – रहीम जी कहते है छोटी सोच और बुरे लोगों का साथ हर हाल में हानि ही देता है। इसलिए ऐसे लोगों का साथ छोड़ देना चाहिए। जिस तरह अंगार गर्म अवस्था में शरीर को जलाता है और ठंडा होने पर शरीर को काला कर देता हैं। ठीक इसी प्रकार ओछा व्यक्ति हर अवस्था में सिर्फ नुकसान ही देता हैं।
26 दोहा – जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढे अँधेरो होय।
अर्थ – रहीम जी कहते है दिये और कपूत का चरित्र समान होता है। जिस तरह दीपक पहले प्रकाश देता है और जैसे-जैसे बड़ा होने लगता है अंधेरा देने लगता हैं। ठीक इसी प्रकार घर का कुपुत्र पहले तो सबका विश्वास जीतकर सबको खुशियाँ देता है और जैसे ही बड़ा होता है अपने कुकर्म से सबको अंधेरे में ढकेल देता हैं। कहने का मतलब यह है दिये और कुपुत्र की गति बाहर से कुछ और अंदर से कुछ ओर ही होती हैं।
27 दोहा – लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार जा।
हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार।
अर्थ – रहीम जी कहते है तलवार ना तो लोहे की कही जाएगी और ना ही लोहार की। तलवार की पहचान तो उस वीर से की जाएगी जिसने वीरता से शत्रु के शीश को काटकर उसका अंत किया।
28 दोहा – रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि।
अर्थ – रहीम जी कहते है जब कोई व्यक्ति दूसरों से कुछ माँगता है तो वो मरे हुए के समान हैं। लेकिन वो लोग तो पहले ही मर जाते है जब याचक की माँग पर भी उनके मुख से कुछ नहीं निकलता।
29 दोहा – मथत-मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय।
रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय।
अर्थ – रहीम जी कहते है मक्खन को कितना भी मथो वो अपने स्वरूप में ही रहता है लेकिन मट्ठा जरा सा मथते ही दही का साथ छोड़ देता है और अपने अलग स्वरूप में चला जाता हैं। कहने का तात्पर्य यह है सच्चा दोस्त वहीं होता है जो हर परिस्थिति में अपने दोस्त का साथ दें। ऐसा दोस्त किस काम का जो विपत्ति के समय अपना अलग मार्ग बना लेता हैं।
30 दोहा – रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।
अर्थ – रहीम जी कहते है जब समय अपने साथ ना हो तो उस वक्त मौन रहना उचित हैं। क्योंकि जब सही समय आता है तो काम को बनते देर नहीं लगती। इसलिए सब्र के साथ अपने सही समय का इंतजार करे।
Rahim Das Ke Dohe in Hindi - रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित 


31 दोहा – रहिमन मनहि लगाईं कै, देख लेहूँ किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय।
अर्थ – रहीम जी कहते है अगर आप अपने मन को एक ही काम में स्थित करेंगे तो सफलता आपको निश्चित मिलेगी। अगर व्यक्ति अपने स्थिर मन से प्रभु का ध्यान करे तो वो ईश्वर को भी अपने वश में कर सकता हैं। क्योंकि ईश्वर ने मनुष्य के मन में अपार शक्ति दी है। बस जरूरत है उस शक्ति को पहचानने की।
32 दोहा – तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस।
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास।
अर्थ – रहीम जी कहते है हमेशा उस व्यक्ति से आस करो जिससे कुछ पाने की संभावना हो। क्योंकि जब वो खुद उस वस्तु का धनी होगा तभी वो आपकी आशा पूरी कर पायेगा। जैसे पानी से खाली तालाब से प्यास बुझाने की आस लगाना व्यर्थ हैं।
33 दोहा – रहिमन नीर पखान, बूड़े पै सीझै नहीं।
तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं।
अर्थ – रहीम जी कहते है पत्थर को चाहे कितना ही पानी में रख लो वो कभी नरम नहीं होगा। ठीक इसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति की भी यही अवस्था होती है। ऐसे व्यक्ति के सामने चाहे जितना ज्ञान का पाठ कर लो, उसे कुछ समझ नहीं आयेगा।
34 दोहा – मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय।
अर्थ – रहीम जी कहते है मन, मोती, फूल, दूध और रस तब तक अच्छे लगते है जब तक यह अपने असली स्वरूप में सामान्य होते हैं। लेकिन अगर एक बार यह फट या टूट जाए तो लाख जतन करने पर भी यह फिर से सहज और सामान्य रूप में नहीं आ सकते। कहने का अर्थ यह है संसार के सारे बंधन या संबंध इसी आधार पर चलते हैं।
35 दोहा – संपत्ति भरम गंवाई के हाथ रहत कछु नाहिं।
ज्यों रहीम ससि रहत है दिवस अकासहि माहिं।
अर्थ – रहीम जी कहते है व्यक्ति झूठे सुख के चक्कर में गलत मार्ग यानी बुरी लत में पड़कर अपना सब कुछ खो देता है और दुनिया से ओझल हो जाता हैं। जिस प्रकार चाँद दिन में होते हुए भी ना होने के समान रहता है यानी आभाहीन हो जाता हैं।
36 दोहा – रहिमन वहां न जाइये, जहां कपट को हेत।
हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत।
अर्थ – रहीम जी कहते है ऐसी जगह कभी मत जाइए जहाँ लोग छल-कपट को ही प्यार करते है आपसे नहीं। अगर आप ऐसी जगह जाएँगे तो लोग आपसे अपना स्वार्थ ही सिद्ध करेंगे। जिस तरह कुएँ से पानी निकालने का काम बड़ी मेहनत का होता है। ठीक इसी प्रकार भले और मेहनती इंसान अपना भेद बता देते है और कपटी व्यक्ति इसका लाभ उठाकर बिना मेहनत के अपना कार्य सिद्ध कर लेता है यानी हमारे ही पानी से अपना खेत सींच लेता हैं।
37 दोहा – साधु सराहै साधुता, जाती जोखिता जान।
रहिमन सांचे सूर को बैरी कराइ बखान।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में यह कहना चाहते है की तुम्हें इस बात की जानकारी होनी चाहिए की साधु हमेशा सज्जनता और सन्यासी सदा योग और योगी की प्रशंसा करते हैं। लेकिन सच्चे वीर के शौर्य की तारीफ दुश्मन भी करते हैं।
38 दोहा – खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।
अर्थ – रहीम जी कहते है जिस तरह खीरे की कड़वाहट को दूर करने के लिए खीरे के सिरे पर नमक लगाकर उसे रगड़ा जाता है। ठीक उसी प्रकार कटु बोल बोलने वाले के लिए भी यह सजा उपयुक्त हैं।
39 दोहा – जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में यह कहना चाहते है की जो लोग अच्छे और सच्चे स्वभाव के होते है उनपर बुरी संगत का भी कोई असर नहीं पड़ता। जैसे चंदन के पेड़ पर जहरीला साँप कितना भी लिपटा रहे, लेकिन साँप के जहर का कोई असर नहीं पड़ता चंदन पर। क्योंकि चंदन अपनी महक के स्वभाव को पसंद करता है दूसरों के स्वभाव को नहीं।
40 दोहा – वरू रहीम कानन भल्यो वास करिय फल भोग।
बंधू मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग।
अर्थ – रहीम जी ने इस दोहे में बड़े मार्मिक शब्दों का प्रयोग किया है और कहा है निर्धन होकर अपने सगे-संबंधियों या दोस्तों के पास रहने से अच्छा है आप जंगल में जाके इज्ज़त से रहे और फल-फूल खाकर अपना जीवन व्यतीत करे।
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41 दोहा – रहिमन जिह्वा बाबरी, कह गई सरग-पताल।
आपु तु कहि भीतर गई, जूती खात कपाल।
अर्थ – रहीम जी कहते है मनुष्य को हमेशा तौल-मौल कर ही बोलना चाहिए। क्योंकि यह जीभ तो पागल है हमेशा कटु बोलने के लिए तैयार रहती है और कई बार तो यह मुँह से कटु वचन बुलवाकर खुद तो मुँह में छिप जाती है। परिणाम बिचारे सिर को भुगतना पड़ता है क्योंकि लोग तो सिर को ही जूती मारते हैं और जीभ इसका मजा लेती हैं।
42 दोहा – कही रहिम सम्पति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
विपति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में यह कहना चाह रहे है जब तक हमारे पास धन-दौलत होती है तब तक बहुत से रिश्ते-नाते और मित्रों का भी साथ होता हैं। लेकिन मुसीबत के समय बिना स्वार्थ के जो हमारा साथ देता है वो ही सच्चा दोस्त होता हैं। इसलिए कभी-कभी विपत्ति का समय भी जरूरी होता हैं।
43 दोहा – राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ।
जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ।
अर्थ – रहीम जी कहते है अगर राम सोने के हिरण के पीछे नहीं जाते तो सीता को रावण हर के लंका नहीं ले जा पाता। आगे कवि यह कहते है होनहार अपने बस में होती तो ऐसा कदापि नहीं होता। लेकिन होनी को तो घटित होना था। क्योंकि भविष्य में क्या होने वाला है यह अपने हाथ में नहीं हैं। कई होनी पर हमारा बस नहीं चलता। इसलिए जो होना है वो होकर रहेगा। इसमें किसी का दोष नहीं।
44 दोहा – धनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय।
अर्थ – रहीम जी कहते है कीचड़ का पानी विशाल समुंद्र के पानी से कई गुणा श्रेष्ठ है। क्योंकि कीचड़ युक्त पानी से कई प्यासे जीवों की प्यास तृप्त होती है और समुंद्र के अपार पानी के पास अगर कोई प्यासा खड़ा भी हो जाए तो भी समुंद्र उसकी प्यास को शांत नहीं कर सकता। कहने का तात्पर्य यह है जो व्यक्ति इस संसार में किसी के कुछ भी काम नहीं आते वो बेकार की श्रेणी में आते है फिर चाहे वो कितने ही संपन्न क्यों ना हो।
45 दोहा – रहिमन निज संपति बिना, कोउ ना बिपती सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहीं रवि सके बचाय।
अर्थ – रहीम जी कहते है जब विकट परिस्थिति आती है तब व्यक्ति की कमाई गई या बचाई गई संपति ही उसकी सबसे बड़ी सहायक बनती हैं। क्योंकि उस मुश्किल घड़ी में कोई सहायक नहीं बनता और यह दुनिया की रीत हैं। जैसे तालाब का जल सूखने पर सूर्य भी कमल को सूखने से नहीं बचा सकता। कहने का भाव यह है की आमदनी इतनी हो की आप अपनी मूल जरूरतों को पूरा कर कुछ बचा सके और बुरे हालत में किसी के आगे हाथ ना फैलाना पड़े।
46 दोहा – निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ।
पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ।
अर्थ – रहीम जी कहते है मनुष्य के हाथ में सिर्फ कर्म करना लिखा है सिद्धि का मिलना तो भाग्य के हाथ में हैं। जैसे चौपड़ के खेल में पासे अपने हाथ में होते है और दांव भी हम ही खेलते है लेकिन दांव में आएगा क्या यह अपने हाथ में नहीं हैं। इसलिए मनुष्य को अपने अच्छे कर्म पर ध्यान देना चाहिए। फल की चिंता में अपने कर्मो को खराब मत कीजिए।
47 दोहा – थोथे बादर क्वार के, ज्यो रहीम छहरात।
धनी पुरुष निर्धन भये, करे पाछिली बात।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में यह कहना चाहते है की आश्विन माह के जो बादल होते है वो सिर्फ गरजते है बरसते नहीं। क्योंकि इस माह के बादलों में पानी नहीं होता। ठीक इसी प्रकार अमीर व्यक्ति जब गरीब हो जाता है तो वो अपनी अमीरी का अहंकार त्याग नहीं पाता और अपने बीते दिनों को याद करके झूठा घमंड करता रहता हैं। लेकिन मनुष्य को हर परिस्थिति में एक जैसा और अनुकूल व्यवहार करना चाहिए।
48 दोहा – रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय।
भीति आप पै डारि के, सबै पियावै तोय।
अर्थ – रहीम जी कहते है हर उस व्यक्ति के व्यवहार की सराहना होनी चाहिए। जो घड़े और रस्सी की जुगलबंदी की तरह हो। क्योंकि घड़ा और रस्सी स्वयं खतरा उठाकर दूसरों को जल पिलाते है। जबकि कुएँ में घड़े के जाते वक्त रस्सी छूट सकती है या घड़ा फुट सकता है। दोनों ही स्थिति में घड़े और रस्सी को ही जोखिम होता है पानी पीने वाले को नहीं।
49 दोहा – रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुहँ स्याह।
नहीं छलन को परतिया, नहीं कारन को ब्याह।
अर्थ – रहीम जी कहते है तनिक सुख के लिए भला कौन मनुष्य अपने मुख पर कालिख पोतना पसंद करेगा? क्योंकि पराई स्त्री को ना तो अधिक समय के लिए धोखा दिया जा सकता है और ऐसा कोई कारण नहीं जो उससे विवाह किया जाए।
50 दोहा – गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढि।
कूपहु ते कहूँ होत है, मन काहू को बाढी।
अर्थ – रहीम जी कहते है जब गहरे कुएँ से बाल्टी द्वारा पानी निकाला जा सकता है। तो ठीक उसी प्रकार व्यक्ति अपने अच्छे व्यवहार और मधुर वाणी से किसी के हृदय में भी स्वयं के लिए प्रेम उत्पन्न कर सकता हैं। आखिर मनुष्य का हृदय कुएँ से गहरा तो नहीं हो सकता।
कबीर जी के पश्चात रहीम जी के दोहों को ही सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली हैं। रहीम के दोहे बहुत ही प्रेरक और अर्थपूर्ण हैं जो मनुष्य जाती को अच्छे जीवन का संदेश देते हैं। इसलिए हम रहीम जी के अधिकाधिक दोहों को संकलित करने हेतु प्रयासरत हैं।
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