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मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

संत कबीर के दोहे हिंदी सार सहित - Kabir Das Ke Dohe in Hindi Part-2

संत कबीर के दोहे हिंदी सार सहित - Kabir Das Ke Dohe in Hindi
संत कबीर के दोहे हिंदी सार सहित - Kabir Das Ke Dohe in Hindi

संत कबीर एक बहुत बड़े अध्यात्मिक इन्सान थे, कबीर दास जी अपने जीवन में कर्म पर विश्वास करते थे, अगर कबीर शब्द का अर्थ इस्लाम के अनुसार देखा जाए तो कबीर का अर्थ महान होता है| कबीर दास जी कभी भी जाति-पाति में भेदभाव नहीं करते थे |  Kabir Das जी हमेशा अपने उपदेश में इस बात का जरुर जिक्र किया करते थे, कि अल्लाह और राम दोनों एक ही है , बस इनके दो अलग-अलग नाम है | कबीर जी के दोहे बहुत ही ज्ञानवर्धक हैं. निचे पढ़ें- Kabir Das Ke Dohe in Hindi with meaning.



Sant Kabir Das Ji का जन्म एक हिन्दू समुदाय में हुआ था, लेकिन इनका पालन-पोषण एक मुस्लिम परिवार में हुआ था | जिन्होंने इनका पालन-पोषण किया था उनका नाम नीरू और नीमा था | कबीर दास जी की प्रारंभिक शिक्षा रामानन्द जी से मिली थी | ये भी माना जाता है, कि कबीर जी रामानन्द जी सबसे प्रिय शिष्य थे | और उन्होंने अपने जीवनकाल में बहुत सारे ज्ञान को प्राप्त किया, तो आएये दोस्तों अब हम आपको कबीर दास जी के दूआरा कहे गए दोहों के बारे में बताते है, जो हर इन्सान को जानना चाहिए, और जानने के साथ-साथ अपने जीवन में भी धारण करना चाहिए –
नाम (Name)Kabir Das ( कबीर दास )
जन्म (Born)(1398 या  1440) लहरतारा , निकट वाराणसी [ ठीक से ज्ञात नहीं ]
मृत्यु (Died)(1448 या 1518) मगहर [ ठीक से ज्ञात नहीं ]
पेशा (Occupation)कवि, भक्त, सूत कातकर कपड़ा बनाना
राष्ट्रीयता (Nationality)भारतीय

संत कबीर के दोहे हिंदी सार सहित - Kabir Das Ke Dohe in Hindi

दोहा :-  “जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
     “मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

अर्थ:- कबीर दास जी कहना चाहते है की अपने जीवन में तो सभी लोग प्रयास करते है और वह दुनीया  में सब कुछ पा सकते है और उदाहारण के लिए  गोताखोर गहरे पानी में जाते है और उन्हें कुछ ना कुछ मिलता है| और कुछ  लोग एसे भी होते है जो असफलता के डर से पानी के किनारे ही बैठे रहते हैं।

दोहा :- “कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह।
    ”देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।”

अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की जब तक यह हमारी देह है तब तक तू कुछ न कुछ यह हमे देता रहता है । जब देह धूल में मिल जायगी, तब कौन कहेगा कि ‘दो’।

दोहा :- ” देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।
    ” निश्चय कर उपकार ही, जीवन का फन येह।

अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की मरने के बाद आपसे  कौन देने को कहेगा ? इसलिए जब तक जीवन है तब तक आपको परोपकार करना चाहिए| यही जीवन का सच्चा फल है

दोहा :- “या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत।
    “गुरु चरनन चित लाइये, जो पुराण सुख हेत।

अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की इस दुनिया में दो दिन का ही मोह है इसलिए इससे मोह ना रखे| और भगवान की  चरणों में मन लगाओ, जो पूर्ण सुख देने वाला है

दोहा :-  “ऐसी बनी बोलिये, मन का आपा खोय।
    “औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय।

अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की मनुष्य को अपने मन से घमण्ड को मिटाकर| ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो चाहिए जिससे दुसरे लोग सुखी हो, और आपको भी सुख की अनुभूति हो.

Kabir Das Ke Dohe in Hindi


दोहा :-“गाँठी होय सो हाथ कर, हाथ होय सो देह।
    “आगे हाट न बानिया, लेना होय सो लेह।

अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है  की जो गाँठ में बाँध रखा है, उसे हाथ में ला, और जो हाथ में हो उसे आप परोपकार में लगाईए | और नर-शरीर के पश्चात् इतने बड़े बाजार में-कोई व्यापारी  नहीं है, लेना हो सो यही ले-लो।

दोहा :- “धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर। 
    “अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर|

अर्थ:- कबीर दास जी कहना चाहते है की दान धर्म  करने से घन नही घटता है उदाहरण के लिए नदी सदैव बहती है लेकिन उसका जल नही घटता है और आप भी धर्म करने देख सकते है

दोहा:- “कहते को कही जान दे, गुरु की सीख तू लेय।
    “साकट जन औश्वान को, फेरि जवाब न देय।

अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की जो गलत बात करता है उसे करने दो, तुम गुरु की ही शिक्षा धारण करो दुष्टोंतथा कुत्तों को उलट कर उत्तर नही देना चाहिए|

दोहा :- “कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ सिध्द को गाँव।
    ”स्वामी कहै न बैठना, फिर-फिर पूछै नाँव।

अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की जो साघू अपने आप को सर्वोपरि मानते है उनके स्थान पर भी मत जाओ  क्योंकि स्वामीजी ठीक से बैठने तक की बात नहीं करते है और बार बार आपका नाम पूछते है|

दोहा :- “ साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
    “सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की इस दुनिया में ऐसे सज्जनों की जरूरत है उदाहरण के लिए अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। और जो उसमे अच्छा होता है उसे रखता है और जो निरर्थक को उड़ा देता है.

संत कबीर के दोहे हिंदी सार सहित


दोहा :- ” तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय| 
    “कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

अर्थ:- कबीर दास जी कहना चाहते है की छोटे से तिनके की भी नींदा नही करनी चाहिए चाहे वह तुम्हारे पांवों के नीचे दबा हो क्योंकि कभी वह तिनका उड़कर   तुम्हारे आँखों  में भी जा सकता है और गहरी पीड़ा दे सकता है|

दोहा :-  “धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
    “माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की अपने मन में धीरज रखने से सब कुछ सम्भव हो सकता है अगर कोई माली किसी भी पेड़ को सौ घड़े पानी से क्यों ना सींच ले|  लेकिन फल तो ऋतु  आने पर ही लगेगा|

दोहा :-  “दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त|
    “अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

अर्थ:- कबीर दास जी कहना चाहते है की  मनुष्य का यह स्वभाव है की वह  दूसरों के दोष देख कर हंसता है  लेकिन अपना दोष याद नही आते है  जिनका न आदि है न अंत।

दोहा :- बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
      हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।

अर्थ:- कबीर दास जी कहना चाहते है की यदि कोई व्यक्ति सही तरीके से बोलना जानता है तो उससे  पता है की उसकी वाणी अमूल्य है  इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।

दोहा:- अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
     अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की न तो अघिक बोलना अच्छा होता  है और न ही कम बोलना और न ही जरुवत से ज्यदा चुप रहना ठीक है उदाहारण के लिए ना ही ज्यदा वर्षा ठीक है  ना ही ज्यदा घूप  ठीक  है.

Kabir Das Ke Dohe in Hindi with meaning


दोहा :- “कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर| 
    ”काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।

अर्थ :- कबीर दास जी  इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं की सबसे भला हो और संसार में कोई दोस्त ना हो तो कोई दुश्मन भी ना हो

दोहा  :-”कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।
     ”बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।

अर्थ :-  कबीर दास जी कहना चाहते  है कि समुद्र की लहर में मोती आकर बिखर गए लेकिन बगुला उनका भेद नहीं जानता लेकिन हंस चुन चुन कर खा रहा है इसका मतलब है की किसी भी वस्तु का महत्व जानकार ही जानता है।

दोहा :- “बन्दे तू कर बन्दगी, तो पावै दीदार।
    “औसर मानुष जन्म का, बहुरि न बारम्बार।

अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की हे दास तू सद्गुरु की सेवा कर और तब तेरा स्वरूप-साक्षात्कार हो सकता है और फिर से क्या पता की मनुष्य का जन्म बार बार ना मिले
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गुरुवार, 5 दिसंबर 2019

Tulsidas ke Dohe in Hindi - तुलसीदास के दोहे हिंदी अर्थ सहित

Tulsidas ke Dohe in Hindi - तुलसीदास के दोहे हिंदी अर्थ सहित
Tulsidas ke Dohe in Hindi - तुलसीदास के दोहे हिंदी अर्थ सहित 

रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास अपने दोहे के लिए भी बहुप्रचलित है, Tulsidas ke Dohe बहुत ही उम्दा, ज्ञानवर्धक और जीवन को उत्कृष्ट बनानेवाले है ।

इसलिए आज हम आप सभी प्रिय पाठकों के लिए तुलसीदास के दोहे अर्थ सहित लेकर उपस्थित हुए है, जो आपको बहुत ही पसंद आएंगे ऐसा हमें पूर्ण विश्वास है ।


Tulsidas ke Dohe in Hindi

तो आइए पढ़ना शुरू करें Tulsidas ke Dohe with Meaning अपनी सरल Hindi भाषा में ।

Tulsidas ke Dohe Hind with Meaning

तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर ।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ।

तुलसीदास जी कहते हैं कि मधुर वाणी सभी ओर सुख प्रकाशित करती हैं और यह हर किसी को अपनी और सम्मोहित करने का कारगर मंत्र है इसलिए हर मनुष्य को कटु वाणी त्याग कर मीठे बोल बोलने चाहिए ।

काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान ।
तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान ।

तुलसीदासजी कहते हैं कि जब तक काम, क्रोध, घमंड और लालच व्यक्ति के मन में भरे पड़े हैं, तब तक ज्ञानी और मूढ़ व्यक्ति के बीच कोई अंतर नहीं होता है, दोनों ही एक जैसे हो जाते हैं ।

तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर ।
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ।

तुलसीदास जी कहते हैं कि सुंदर परिधान देखकर न सिर्फ मूढ़ बल्कि बुद्धिमान मनुष्य भी झांसा खा जाते हैं । जैसे मनोरम मयूर को देख लीजिए उसके वचन तो अमृत के समरूप है लेकिन खुराक सर्प का है ।

बचन वेष क्या जानिए, मनमलीन नर नारि ।
सूपनखा मृग पूतना, दस मुख प्रमुख विचारि ।

तुलसीदास कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति को उसकी मीठी वाणी और अच्छे पोशाक से यह नहीं जाना जा सकता की वह सज्जन है या दुष्ट । बाहरी सुशोभन और आलंबन से उसके दिमागी हालात पता नहीं लगा सकते । जैसे शूपर्णखां, मरीचि, पूतना और रावण के परिधान अच्छे थे लेकिन मन गंदा ।

तुलसी जे कीरति चहहिं, पर की कीरति खोई ।
तिनके मुंह मसि लागहैं, मिटिहि न मरिहै धोई ।

तुलसीदास कहते हैं कि दूसरों की निंदा करके खुद की पीठ थपथपाने वाले लोग मतिहीन है । ऐसे मूढ़ लोगो के मुख पर एक दिन ऐसी कालिख लगेगी जो मरने तक साथ नहीं छोड़ेगी ।

तनु गुण धन धरम, तेहि बिनु जेहि अभियान ।
तुलसी जिअत बिडम्बना, परिनामहू गत जान ।

तुलसीदास कहते हैं कि सुंदरता, अच्छे गुण, संपत्ति, शोहरत और धर्म के बिना भी जिन लोगों में अहंकार है । ऐसे लोगों का जीवनकाल कष्टप्रद होता है जिसका अंत दुखदाई ही होता है ।

सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु ।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ।

बहादुर व्यक्ति अपनी वीरता युद्ध के मैदान में शत्रु के सामने युद्ध लड़कर दिखाते है और कायर व्यक्ति लड़कर नहीं बल्कि अपनी बातों से ही वीरता दिखाते है ।

सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि ।
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ।

अपने हितकारी स्वामी और गुरु की नसीहत ठुकरा कर जो इनकी सीख से वंचित रहता है, वह अपने दिल में ग्लानि से भर जाता है और उसे अपने हित का नुकसान भुगतना ही पड़ता है ।

राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार ।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ।

अगर मनुष्य अपने भीतर और अपने बाहर जीवन में उजाला चाहता है तो तुलसीदास कहते हैं कि उसे अपने मुखरूपी प्रवेशद्वार की जिह्वारूपी चौखट पर राम नाम की मणि रखनी चाहिए ।

मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक ।
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित विवेक ।

तुलसीदास जी कहते हैं कि अधिनायक (लीडर) मुख जैसा होना चाहिए, जो खान-पान में तो इकलौता होता है लेकिन समझदारी से शरीर के सभी अंगों का बिना भेदभाव समान लालन-पालन करता है ।

सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस ।
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ।

तुलसीदास जी कहते हैं कि मंत्री, हकीम और गुरु यह तीनों अगर लाभ या भय के कारण अहित की मीठी बातें बोलते है तो राष्ट्र, देह और मज़हब के लिए यह अवश्य विनाशकारी साबित होता है और इस वजह से राष्ट्र, देह और मज़हब का जल्द ही पतन हो जाता है ।

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि ।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ।

गोस्वामी जी कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने नुकसान का अंदेशा लगाकर अपने पनाह में आयें शरणार्थी को नकार देते है, वो नीच और पापी होते हैं । ऐसे लोगो से तो दूरी बनाये रखना ही उचित है ।

दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान ।
तुलसी दया न छांड़िए जब लग घट में प्राण ।

तुलसीदास जी कहते हैं कि दया, करुणा धर्म का मूल है और घमंड सभी दुराचरण की जड़ इसलिए मनुष्य को हमेशा करुणामय रहना चाहिए और दया का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए ।

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह ।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह ।

जिस समूह में शिरकत होने से वहां के लोग आपसे खुश नहीं होते और वहां लोगों की नज़रों में आपके लिए प्रेम या स्नेह नहीं है, तो ऐसे स्थान या समूह में हमें कभी शिरकत नहीं करना चाहिए, भले ही वहाँ स्वर्ण बरस रहा हो।

तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक ।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक ।

तुलसीदास जी कहते हैं कि किसी भी विपदा से यह सात गुण आपको बचाएंगे, 1 –  आपकी विद्या, ज्ञान 2 – आपका विनय,विवेक, 3 – आपके अंदर का साहस, पराक्रम 4 – आपकी बुद्धि, प्रज्ञा 5 – आपके भले कर्म 6 – आपकी सत्यनिष्ठा 7 – आपका भगवान के प्रति विश्वास ।

तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान ।
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण ।

तुलसीदास जी कहते हैं कि समय समय बलवान न मनुष्य महान अर्थात मनुष्य बड़ा या छोटा नहीं होता वास्तव में यह उसका समय ही होता है जो बलवान होता है । जैसे एक समय था जब महान धनुर्धर अर्जुन ने अपने गांडीव बाण से महाभारत का युद्ध जीता था और एक ऐसा भी समय आया जब वही महान धनुर्धर अर्जुन भीलों के हाथों लुट गया और वह अपनी गोपियों का भीलों के आक्रमण से रक्षण भी नहीं कर पाया ।

तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग ।
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग ।

तुलसीदास जी कहते हैं, इस जगत में भांति भांति (कई प्रकार के) प्रकृति के लोग है, आपको सभी से प्यार से मिलना-जुलना चाहिए । जैसे एक नौका नदी से प्यार से सफ़र कर दूसरे किनारे पहुंच जाती है, ठीक वैसे ही मनुष्य भी सौम्य व्यवहार से भवसागर के उस पार पहुंच जाएगा ।

नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु ।
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ।

तुलसीदास जी कहते हैं कि राम का नाम कल्पवृक्ष (हर इच्छा पूरी करनेवाला वृक्ष) और कल्याण का निवास (स्वर्गलोक) है, जिसको स्मरण करने से भाँग सा (तुच्छ सा) तुलसीदास भी तुलसी की तरह पावन हो गया ।

तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए ।
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए ।

तुलसीदास कहते हैं, भगवान पर भरोसा करें और किसी भी भय के बिना शांति से सोइए । कुछ भी अनावश्यक नहीं होगा, और अगर कुछ अनिष्ट घटना ही है तो वो घटकर ही रहेगा इसलिए अनर्थक चिंता, परेशानी छोड़ कर मस्त जिए ।

तो दोस्तों यह थे महान कवि तुलसीदास के दोहे (Tulsidas ke Dohe in Hindi) और इसका सार हमने हमारी अपनी आसान Hindi भाषा में लिखा है, हमें आशा है की यह दोहे सार सहित आपको बेहद पसंद आयें होंगे और इन दोहों में से आपको अपने जीवन को बेहतर तरीके से जीने की सीख मिली होगी ।

अगर आपको यह Tulsidas के Dohe पसंद आये है तो कृपया इसे अपने पसंदीदा सोशल मीडिया पर शेयर जरूर करे और कमेंट्स के माध्यम से हमें आपका प्यार भेजें । दिल से शुक्रिया!

Tulsidas ke Dohe in Hindi - तुलसीदास के दोहे हिंदी अर्थ सहित 
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Kabir ke Dohe with Meaning in Hindi - कबीर दास के दोहे

Kabir ke Dohe with Meaning in Hindi - कबीर दास के दोहे
Kabir ke Dohe with Meaning in Hindi - कबीर दास के दोहे 


आपने अपनी नानी-दादी को बात-बात पर कबीर दास के दोहे कहते सुना होगा । पर Kabir ke Dohe अगर आप नानी-दादी की पीढ़ी की चीज़ें मानते हैं, तो विश्वास मानिए आप भारी भूल कर रहे हैं । हमारी पीढ़ी को पंद्रहवीं सदी में पैदा हुए Kabir Das की आज कहीं ज़्यादा ज़रूरत है ।

Kabir Das ने आज से सदियों पहले वह कर दिखाया जिसे आज भी हम कर पाने से डरते हैं – कबीर दास ने अपने समय के बड़े-बड़े दिग्गजों को और समाज की तमाम धार्मिक कुरीतियों को खुली चुनौती दी । सबसे बढ़कर, कबीर दास ने ज़िन्दगी जीने का जो तरीका सामने रखा, वह बेमिसाल था ।

Kabir ke Dohe हमें ज़िन्दगी जीने का बहुत सुन्दर तरीका सिखा सकते हैं और मुश्किल घड़ियों में हमारी बहुत मदद कर सकते हैं । हमें बहुत बड़ी गलतियाँ करने से, किसी का बुरा करने से, कबीर आज भी बचा सकते हैं । क्या आपको ये सब बातें किताबी लगती हैं? चलिए आपकी ही ज़िन्दगी से एक उदाहरण आपके सामने रखते हैं:


अक्सर ऐसा होता है कि हम दूसरों के लिए अच्छा करते हैं, पर बार-बार पलट कर लोग हमारा ही अहित करते हैं – हमारे ख़िलाफ़ ज़हर उगलते हैं ।

मन में तब यह बात आती है कि दूसरों का भला करने से क्या फ़ायदा? सब गलत कर रहे हैं तो मैं ही क्यूँ सबका भला करूँ? और ऐसी हिदायत देने वाले भी हमें मिल जाते हैं । यही मौके हमारी अच्छाई का इम्तिहान लेते हैं और इस इम्तिहान में पास होने में बेहद मदद करते हैं – कबीर दास :

Kabir ke Dohe with Meaning in Hindi

संत ना छाडै संतई, कोटिक मिले असंत ।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटत रहत भुजंग ।

(अर्थ: सच्चा इंसान वही है जो अपनी सज्जनता कभी नहीं छोड़ता, चाहे कितने ही बुरे लोग उसे क्यों न मिलें, बिलकुल वैसे ही जैसे हज़ारों ज़हरीले सांप चन्दन के पेड़ से लिपटे रहने के बावजूद चन्दन कभी भी विषैला नहीं होता ।)

कहिये, क्या कहते हैं आप? है आप में यह हौसला? कहते हैं बुरा काम करना आसान है, पर सबके लिए अच्छा करते चले जाना सिर्फ ताकतवर लोगों के बस की बात होती है ।


वाकई दुनिया में हमारा बुरा चाहने वाले और हमारे साथ बुरा करने वालों की कोई कमी नहीं है । सवाल यह है कि ऐसे में हम क्या करें? क्या हम भी उसी बुराई को अपना लें? जवाब देते हैं कबीर दास :

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय ।
सार–सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय ।

(अर्थ: एक अच्छे इंसान को सूप जैसा होना चाहिए जो कि अनाज को तो रख ले पर उसके छिलके व दूसरी गैर-ज़रूरी चीज़ों को बाहर कर दे ।)

कितना बेहतरीन तरीका सुझाया है कबीर ने! अगर चारों ओर गंदगी है, तो उससे हम अपना मन गंदा क्यों करें? सबसे बड़ी चीज़ है अपने मन को साफ़ और सुन्दर रखना, पर यह अपने आप नहीं होता । जैसे बाहर की धूल हमारे कमरे को गन्दा कर देती है, वैसे ही दुनिया की मैल भी हम सबके मन को गंदा करती है । उसे साफ़ करते रहना होता है ।

हमें घर साफ़ करना और नहाना तो याद रहता है, लेकिन मन को कपड़ा लेकर साफ़ करते रहना भूल जाता है । यह याद दिलाने का काम कबीर करते हैं :

तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय ।
सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।

(अर्थ: हम सभी हर रोज़ अपने शरीर को साफ़ करते हैं लेकिन मन को बहुत कम लोग साफ़ करते हैं । जो इंसान अपने मन को साफ़ करता है, वही हर मायने में सच्चा इंसान बन पाता है ।)

Kabir बार-बार अपने दोहों में झूठे पाखंड और ऊपरी ढोंग से बचने के लिए कहते हैं । लोग सोचते हैं कि सिर्फ ऊपरी धार्मिक कर्मकाण्ड करके वे अपने मन को साफ़ कर सकते हैं, कबीर कहते हैं :

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ।

(अर्थ: माला फेरते-फेरते युग बीत गया लेकिन मन में जमी बुराइयां नहीं हटीं । इसीलिए, यह लकड़ी की माला को हटा कर मन की साधना करो!)

कबीर ने ऐसे ही ढोंगी लोगों पर, जो ऊपर से अपने आप को शुद्ध और महान दिखाने की कोशिश करते हैं, व्यंग्य कसते हुए कहा था :

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।

(अर्थ: अगर मन का मैल ही नहीं गया तो ऐसे नहाने से क्या फ़ायदा? मछली हमेशा पानी में ही रहती है, पर फिर भी उसे कितना भी धोइए, उसकी बदबू नहीं जाती ।)

ठीक है, कहने के लिए या उपदेश देने के लिए तो यह बात अच्छी है, पर क्या वाकई ऐसा कर पाना आज के ज़माने में प्रैक्टिकल है भी? हममें से बहुत सारे लोग ये बातें सुनकर ऐसा ज़रूर सोचते हैं । इसका जवाब किताबों में नहीं है, कबीर के पास है :

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय ।
ढाई आखर प्रेम का जो पढ़े सो पंडित होय ।

(अर्थ: मोटी-मोटी किताबें पढ़कर कभी कोई ज्ञानी नहीं बना । “प्रेम” शब्द का ढाई अक्षर जिसने पढ़ लिया, वही सच्चा विद्वान बना ।)


ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग ।
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ।

(अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जिसने कभी अच्छे लोगों की संगति नहीं की और न ही कोई अच्छा काम किया, उसका तो ज़िन्दगी का सारा गुजारा हुआ समय ही बेकार हो गया । जिसके मन में दूसरों के लिए प्रेम नहीं है, वह इंसान पशु के समान है और जिसके मन में सच्ची भक्ति नहीं है उसके ह्रदय में कभी अच्छाई या ईश्वर का वास नहीं होता ।)

Kabir ke Dohe with Meaning in Hindi


Kabir की सोच बड़ी साफ़ और सुलझी हुई सोच थी । उनका मानना था कि वह आदमी जिसके मन में दुनिया के लिए प्यार है, वही असली इंसान बन सकता है और दुनिया भर के लिए यह प्यार पैदा होता है दूसरे के दुःख-तकलीफ को अपना समझे से :

कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर ।
जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर ।

(अर्थ: जो इंसान दूसरों की पीड़ा को समझता है वही सच्चा इंसान है । जो दूसरों के कष्ट को ही नहीं समझ पाता, ऐसा इंसान भला किस काम का!)

आज ज़्यादातर लोग सिर्फ अपने बारे में, अपने दुःख-सुख के बारे में सोचते है, जैसे कि जानवर, जो सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं, लेकिन हमें जो चीज़ जानवरों से अलग करती है वह है हमारा दूसरों से लगाव और जुड़ाव । कबीर कहते हैं :

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।

(अर्थ: मिट्टी कुम्हार से कहती है कि आज तुम मुझे रौंद रहे हो, पर एक दिन ऐसा भी आयेगा जब तुम भी मिट्टी हो जाओगे और मैं तुम्हें रौंदूंगी!)

कितनी दूर तक की देखते हैं कबीर! हम सब हर वक्त अपने बारे में ही चिंतित रहते हैं पर यह भूल जाते हैं कि एक दिन हमें भी मिट्टी में ही विलीन हो जाना है और पीछे सिर्फ हमारे किये हुए अच्छे या बुरे काम रह जाने हैं ।

कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये ।

(अर्थ: कबीर कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे तब सब खुश थे और हम रो रहे थे । पर कुछ ऐसा काम ज़िन्दगी रहते करके जाओ कि जब हम मरें तो सब रोयें और हम हँसें ।)

यह हुआ असली इंसान की तरह ज़िन्दगी जीने का तरीका – जिंदादिली और सच्चाई के साथ! तो कम से कम अब तो आप मानेंगे कि कबीर एक बेहतर ज़िंदगी जीने में वाकई हमारी मदद कर सकते हैं ।

ज़िन्दगी तो सब जीते हैं लेकिन कैसे जीते हैं यह है सवाल और इसे तय करना बिलकुल हमारे हाथों में है! कबीर ने ऐसी ज़िंदगी जी जो आज भी मिसाल है, तो आइये हम भी कुछ ऐसी ही जिंदगी जी कर दिखाए और दूसरों के लिए मिसाल बने! तो कहिये, क्या कहते हैं आप?

तो फ्रेंड्स, यह थे kabir ke dohe अर्थ सहित हिंदी में, हमें विश्वास है की यह दोहे आपके जीवन को आसान और समृद्ध बनाने में बहुत ही उपयोगी साबित होंगे । शुक्रिया! 
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Rahim Das Ke Dohe in Hindi - रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित

Rahim Das Ke Dohe in Hindi - रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित
Rahim Das Ke Dohe in Hindi - रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित 

रहीम के दोहे अपने समय में सभी के पढ़े हुए है। लेकिन आज भी उनकी उपस्थिति दोहों के रूप में उतनी ही महत्वपूर्ण और उपयोगी है जितनी उनकी अपने समय में थी। रहीम जी के दोहे अनंत काल तक ऐसे ही सदा सबके जीवन में रोशनी भरते रहेंगे और मार्गदर्शन करेंगे।
जीवन परिचय-
पूरा नाम – अब्दुल रहीम खाने खाना
जन्म – दिसंबर 1556, लाहौर
मृत्यु – सन् 1627
पिता – मरहूम बैरम खाने खान
माता – सुल्ताना बेगम
प्रसिद्धि – कवि, विद्वान
रचनाएं – रहीम दोहावली, रहीम सतसई, मदनाश्टक, रहीम रत्नावली

रहीम जी के वालिद अकबर के संरक्षक थे। कहा जाता है रहीम जी के जन्म पर इनका नामकरण स्वयं अकबर ने किया था। यह बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। एक ही समय में यह प्रशासक, आश्रयदाता, सेनापति, कूटनीतिज्ञ, दानवीर, कलाप्रेमी, कवि, विद्वान और बहुभाषी गुणों के प्रख्यात ज्ञानी थे।
यह सभी जातिवर्ण के प्रति समान भाव के सत्यनिष्ठ साधक थे। रहीम जी भारतीय संस्कृति के सच्चे आराधक और मानवता के सूत्रधार थे। इतना ही नहीं रहीम जी तलवार और कलम के अच्छे धनी थे।
तो चलिए समय को ना गवाते हुए रहीम जी के कुछ चुनिन्दा दोहों को पढ़िए और समझिए। क्योंकि इनके दोहे चाय में चीनी की तरह है। जिस तरह थोड़ी सी चीनी पूरी चाय में मिठास का रस घोल देती हैं ठीक उसी तरह रहीम जी के दोहों में शब्दों की संख्या कम है लेकिन इनका महत्व, मर्म और जीवन का सार अनंत हैं।

रहीम के दोहे

Rahim Das Ke Dohe in Hindi - रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित 


1 दोहा – जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है अगर किसी बड़े को छोटा कह भी दिया जाए तो उससे उसका बड़प्पन कम नहीं होता। जैसे गिरधर को कान्हा कह भी दिया तो क्या गिरधर को बुरा लगेगा? नहीं, क्योंकि गिरधर की महिमा उनके नाम से कम नहीं होती।
2 दोहा – रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है संसार में प्रेम का धागा यानी रिश्ता बहुत ही नाज़ुक होता हैं। इसे जरा से झगड़े या मनमुटाव के कारण तोड़ना उचित नहीं। यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूटता है तो फिर इसे जोड़ना बहुत ही मुश्किल हैं और जैसे-तैसे अगर इस धागे को जोड़ भी दिया जाए तो इसमें अविश्वास की गाँठ पड़ जाती हैं।
3 दोहा – बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है व्यक्ति को अपने व्यवहार में वाणी का लेन-देन सोच समझकर करना चाहिए। क्योंकि किसी वजह से अगर बात बिगड़ जाती है तो उसे फिर से संभालना नामुमकिन होता है। जिस तरह दूध के फटने पर चाहे लाख कोशिश कर लो उसे मथकार मक्खन नहीं निकाला जा सकता।
4 दोहा – क्षमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है बड़ों में हमेशा क्षमा का भाव होना चाहिए और छोटों में शरारत। कहने का तात्पर्य यह है छोटों की शरारत भी हमेशा छोटी ही होती है। इसलिए बड़े अपना बड़प्पन दिखाते हुए क्षमा करना सीखे। क्योंकि बड़ों के व्यवहार में क्षमा शोभा देती हैं। जैसे एक छोटा सा कीड़ा अगर लात मार भी दें तो उससे भला क्या क्षति होने वाली हैं।
5 दोहा – रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है किसी बड़ी वस्तु के मिल जाने से छोटी वस्तु को बाहर मत फेकिय। क्योंकि इससे छोटी वस्तु की कीमत कम नहीं होती। जहाँ सुई काम आ सकती है वहाँ बड़ी तलवार किसी काम की नहीं।
6 दोहा – तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है पेड़ स्वयं अपना फल नहीं खाता और ना ही नदी स्वयं अपना जल पीती हैं। ठीक इसी प्रकार सज्जन और अच्छे मनुष्य भी दूसरों के हित और कार्य के लिए धन का संचय करते हैं।
7 दोहा – रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि-फिरि पोइए, टूटे मुक्ताहार।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है जिस प्रकार कीमती मोतियों की माला के टूटने पर सभी मोतियों को इकट्ठा करके धागे में पिरो दिए जाते हैं। ठीक उसी प्रकार प्रियजन के सौ बार नाराज होने पर भी उन्हें मना लेना चाहिए।
8 दोहा – दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है कौआ और कोयल समान रंग के होते हैं। लेकिन जब तक उनकी आवाज सुनाई ना दे तब तक उनकी पहचान मुश्किल हैं। लेकिन जैसे ही बसंत का मौसम आता है दोनों के बीच का अंतर कोयल की मीठी और सुरीली बोली से दूर हो जाता हैं। तात्पर्य यह है समय आने पर इंसान की परख उसकी बोली से हो जाती है तब तक सब समान लगता हैं।
9 दोहा – खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है दुनिया आपकी खैरियत, अपराध, बीमारी, दुख-सुख, दुश्मनी, प्यार, बुरी आदत जैसी सभी बातों को भलीभाँति जानती हैं। इसलिए आप इस भ्रम में ना रहिए की आप किसी से कुछ छिपा सकते हैं।
10 दोहा – समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है समय का फेरा कभी एक जैसा नहीं रहता। जिस तरह समयनुसार पेड़ पर फल आते और झड़ते हैं। ठीक वैसे ही बुरी स्थिति में पछताने का कोई लाभ नहीं। क्योंकि यह स्थिति भी वक्त के साथ बदल जायेगी।
Rahim Das Ke Dohe in Hindi - रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित 


11 दोहा – रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है बुरे और गिरे हुए मनुष्य के साथ ना तो दोस्ती अच्छी है और ना ही दुश्मनी। क्योंकि कुत्ते का काटना और चाटना दोनों ही घातक हैं।
12 दोहा – जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है इस शरीर को सब कुछ सहने की आदत होनी चाहिए। जिस तरह यह धरती सर्दी, गर्मी और बारिश अपने ऊपर सब कुछ सहन करती हैं। ठीक उसी प्रकार इस शरीर को भी सुख-दुख, अच्छा-बुरा सब कुछ धरती की तरह सहन करना आना चाहिए।
13 दोहा – एकहि साधै सब सधैए, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबोए, फूलहि फलहि अघाय।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है एक पर ध्यान देने से सभी का ध्यान संभव है। लेकिन सभी पर साथ ध्यान देने से सबके खोने की संभावना अधिक रहती हैं। ठीक वैसे ही जैसे पेड़ की जड़ को सींचने से फूल-फल, तना सभी भाग को पानी प्राप्त हो जाता है उन्हें अलग-अलग पानी देने की जरूरत नहीं पड़ती। कहने का अर्थ यह है व्यक्ति को भी अपने एक कार्य में ही पूरी साधना करनी चाहिए। क्योंकि कई कार्य एक साथ करने के चक्कर में सारे काम बिगड़ने की आशंका बनी रहती हैं।
14 दोहा – वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटन वारे को लगे, ज्यो मेहंदी को रंग।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है ऐसे लोगों का जीवन धन्य है जिनका संपूर्ण जीवन सदा दूसरों के परोपकार में गुजरा हैं। जिस तरह मेंहदी बेचने वाले के हाथ में रंग और खुशबू दोनों रह जाती हैं। ठीक इसी प्रकार परोपकारी व्यक्ति की अच्छाई सभी जगह महकती हैं।
15 दोहा – जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है जब छोटी सोच के लोग अचानक से अपने जीवन में तरक्की कर लेते है तो फूले नहीं समाते। जैसे शतरंज के खेल में किस्मत से जब प्यादा आगे बढ़कर रानी बन जाता है तो इतराते हुए टेढ़ी चाल चलने लग जाता है और यह भूल जाता है की मेरी पहचान एक प्यादे से हैं। जीवन में तरक्की आपकी बाधा नहीं बल्कि सोच आपकी रुकावट हैं।
16 दोहा – आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है इज्जत, आदर और आँखों का प्रेम तभी खत्म हो जाता है जब कोई किसी से कुछ माँग लेता हैं। इसलिए इतना इंतजाम जरूर करो जिससे बुरा समय निकल जाए और किसी के आगे हाथ ना फैलाना पड़े।
17 दोहा – रहिमन विपदा हु भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है समस्या कुछ दिनों की आए तो ही अच्छा हैं। क्योंकि ऐसे समय में ही दुनिया का पता चलता है की कौन अपना है और कौन पराया।
18 दोहा – देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरै, याते नीचे नैन।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है देने वाला तो वो ईश्वर है जो दिन रात हमें देता रहता हैं। लेकिन लोगों की मूर्खता की तो कोई हद नहीं, जो यह सोचते है की सब कुछ हम ही कर रहे हैं। आगे रहीम जी कहते है लोगों की इस मूर्खता और भ्रम को देखकर मेरी आँखें शर्म से झुक जाती हैं।
19 दोहा – रहिमन पानी राखिए, बिनू पानी सब सुन।
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।
अर्थ – रहीम जी ने इस दोहे में पानी शब्द का तीन बार उपयोग किया है जिसमें तीनों बार पानी का अर्थ अलग-अलग हैं। संसार और संसार की हर चीज के लिए पानी ही सब कुछ है क्योंकि पानी के बिना संसार कुछ नहीं। मोती का पानी यानी चमक बनाए रखना चाहिए नहीं तो उसकी कीमत कम हो जाती हैं। व्यक्ति को अपना पानी यानी मान-प्रतिष्ठा बनाए रखनी चाहिए। क्योंकि संसार में मान बिना इंसान की कोई पहचान नहीं और पानी यानी पीने के जल को व्यर्थ ना करे, क्योंकि अगर संसार से पानी गया तो हर जीव का जीवन भी समाप्त हो जायेगा।
20 दोहा – रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ।
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में कहते है मन की व्यथा आँसू द्वारा आँखों से झलक जाती हैं। लेकिन एक सत्य यह भी है जिसे घर से निकाल दिया जाता है वो घर की बातें यानी भेद दूसरों से कहकर ही अपने मन को हल्का करेगा। इसलिए अपना मन हल्का अपनों के साथ करे। इसके लिए दूसरों के कंधे का सहारा ना लें।
Rahim Das Ke Dohe in Hindi - रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित 


21 दोहा – रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।
अर्थ – रहीम जी कहते है अपने मन की पीड़ा को अपने मन में ही दफन करके रखो। क्योंकि दूसरें का दुख सुनकर लोग उदास होकर इठला तो लेते है लेकिन पीछे से उसी का मजाक बनाते हैं। दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम है जो दूसरों के दर्द को कम करके उसका सहारा बनने का काम करें।
22 दोहा – चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कुछ नहीं चाहिये, वे साहन के साह।
अर्थ – रहीम जी कहते है जैसे ही व्यक्ति की चाह मिट जाती है तो उसकी चिंता का बोझ हल्का हो जाता है और मन हल्का होकर निश्चिंत हो जाता हैं। जो व्यक्ति सभी चाह को त्याग कर संतुष्टि धारण कर लेता है वो तो राजाओं का भी राजा बन जाता हैं। क्योंकि व्यक्ति से सारे अच्छे-बुरे कर्म यह चाह ही करवाती हैं।
23 दोहा – जे गरिब सों हित करें, ते रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।
अर्थ – रहीम जी कहते है जो लोग अपना पूरा जीवन गरीबों की सेवा में लगा देते है वो लोग संसार में बड़े महान होते हैं। जैसे सुदामा की गरीबी कृष्ण से मिलते ही दूर हो गई। ऐसी दोस्ती भी अपने आप में एक साधना हैं।
24 दोहा – पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।
अर्थ – रहीम जी कहते है वर्षा का मौसम आते ही मेरा और कोयल का मन चुप्पी धारण कर लेता है क्योंकि यह समय तो मेंढक के बोलने का होता है। फिर भला हमारी सुनेगा कौन? कहने का तात्पर्य यह है की कुछ अवसर ऐसा भी आता है जब गुणी व्यक्ति को चुप रहना पड़ता है। उस वक्त उनको कोई नहीं सुनना चाहता और ना ही कोई उनका आदर करता हैं। क्योंकि ऐसे कुछ अवसर में गुणहीन व्यक्ति का ही बोलबाला होता हैं।
25 दोहा – ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों।
तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै।
अर्थ – रहीम जी कहते है छोटी सोच और बुरे लोगों का साथ हर हाल में हानि ही देता है। इसलिए ऐसे लोगों का साथ छोड़ देना चाहिए। जिस तरह अंगार गर्म अवस्था में शरीर को जलाता है और ठंडा होने पर शरीर को काला कर देता हैं। ठीक इसी प्रकार ओछा व्यक्ति हर अवस्था में सिर्फ नुकसान ही देता हैं।
26 दोहा – जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढे अँधेरो होय।
अर्थ – रहीम जी कहते है दिये और कपूत का चरित्र समान होता है। जिस तरह दीपक पहले प्रकाश देता है और जैसे-जैसे बड़ा होने लगता है अंधेरा देने लगता हैं। ठीक इसी प्रकार घर का कुपुत्र पहले तो सबका विश्वास जीतकर सबको खुशियाँ देता है और जैसे ही बड़ा होता है अपने कुकर्म से सबको अंधेरे में ढकेल देता हैं। कहने का मतलब यह है दिये और कुपुत्र की गति बाहर से कुछ और अंदर से कुछ ओर ही होती हैं।
27 दोहा – लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार जा।
हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार।
अर्थ – रहीम जी कहते है तलवार ना तो लोहे की कही जाएगी और ना ही लोहार की। तलवार की पहचान तो उस वीर से की जाएगी जिसने वीरता से शत्रु के शीश को काटकर उसका अंत किया।
28 दोहा – रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि।
अर्थ – रहीम जी कहते है जब कोई व्यक्ति दूसरों से कुछ माँगता है तो वो मरे हुए के समान हैं। लेकिन वो लोग तो पहले ही मर जाते है जब याचक की माँग पर भी उनके मुख से कुछ नहीं निकलता।
29 दोहा – मथत-मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय।
रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय।
अर्थ – रहीम जी कहते है मक्खन को कितना भी मथो वो अपने स्वरूप में ही रहता है लेकिन मट्ठा जरा सा मथते ही दही का साथ छोड़ देता है और अपने अलग स्वरूप में चला जाता हैं। कहने का तात्पर्य यह है सच्चा दोस्त वहीं होता है जो हर परिस्थिति में अपने दोस्त का साथ दें। ऐसा दोस्त किस काम का जो विपत्ति के समय अपना अलग मार्ग बना लेता हैं।
30 दोहा – रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।
अर्थ – रहीम जी कहते है जब समय अपने साथ ना हो तो उस वक्त मौन रहना उचित हैं। क्योंकि जब सही समय आता है तो काम को बनते देर नहीं लगती। इसलिए सब्र के साथ अपने सही समय का इंतजार करे।
Rahim Das Ke Dohe in Hindi - रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित 


31 दोहा – रहिमन मनहि लगाईं कै, देख लेहूँ किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय।
अर्थ – रहीम जी कहते है अगर आप अपने मन को एक ही काम में स्थित करेंगे तो सफलता आपको निश्चित मिलेगी। अगर व्यक्ति अपने स्थिर मन से प्रभु का ध्यान करे तो वो ईश्वर को भी अपने वश में कर सकता हैं। क्योंकि ईश्वर ने मनुष्य के मन में अपार शक्ति दी है। बस जरूरत है उस शक्ति को पहचानने की।
32 दोहा – तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस।
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास।
अर्थ – रहीम जी कहते है हमेशा उस व्यक्ति से आस करो जिससे कुछ पाने की संभावना हो। क्योंकि जब वो खुद उस वस्तु का धनी होगा तभी वो आपकी आशा पूरी कर पायेगा। जैसे पानी से खाली तालाब से प्यास बुझाने की आस लगाना व्यर्थ हैं।
33 दोहा – रहिमन नीर पखान, बूड़े पै सीझै नहीं।
तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं।
अर्थ – रहीम जी कहते है पत्थर को चाहे कितना ही पानी में रख लो वो कभी नरम नहीं होगा। ठीक इसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति की भी यही अवस्था होती है। ऐसे व्यक्ति के सामने चाहे जितना ज्ञान का पाठ कर लो, उसे कुछ समझ नहीं आयेगा।
34 दोहा – मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय।
अर्थ – रहीम जी कहते है मन, मोती, फूल, दूध और रस तब तक अच्छे लगते है जब तक यह अपने असली स्वरूप में सामान्य होते हैं। लेकिन अगर एक बार यह फट या टूट जाए तो लाख जतन करने पर भी यह फिर से सहज और सामान्य रूप में नहीं आ सकते। कहने का अर्थ यह है संसार के सारे बंधन या संबंध इसी आधार पर चलते हैं।
35 दोहा – संपत्ति भरम गंवाई के हाथ रहत कछु नाहिं।
ज्यों रहीम ससि रहत है दिवस अकासहि माहिं।
अर्थ – रहीम जी कहते है व्यक्ति झूठे सुख के चक्कर में गलत मार्ग यानी बुरी लत में पड़कर अपना सब कुछ खो देता है और दुनिया से ओझल हो जाता हैं। जिस प्रकार चाँद दिन में होते हुए भी ना होने के समान रहता है यानी आभाहीन हो जाता हैं।
36 दोहा – रहिमन वहां न जाइये, जहां कपट को हेत।
हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत।
अर्थ – रहीम जी कहते है ऐसी जगह कभी मत जाइए जहाँ लोग छल-कपट को ही प्यार करते है आपसे नहीं। अगर आप ऐसी जगह जाएँगे तो लोग आपसे अपना स्वार्थ ही सिद्ध करेंगे। जिस तरह कुएँ से पानी निकालने का काम बड़ी मेहनत का होता है। ठीक इसी प्रकार भले और मेहनती इंसान अपना भेद बता देते है और कपटी व्यक्ति इसका लाभ उठाकर बिना मेहनत के अपना कार्य सिद्ध कर लेता है यानी हमारे ही पानी से अपना खेत सींच लेता हैं।
37 दोहा – साधु सराहै साधुता, जाती जोखिता जान।
रहिमन सांचे सूर को बैरी कराइ बखान।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में यह कहना चाहते है की तुम्हें इस बात की जानकारी होनी चाहिए की साधु हमेशा सज्जनता और सन्यासी सदा योग और योगी की प्रशंसा करते हैं। लेकिन सच्चे वीर के शौर्य की तारीफ दुश्मन भी करते हैं।
38 दोहा – खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।
अर्थ – रहीम जी कहते है जिस तरह खीरे की कड़वाहट को दूर करने के लिए खीरे के सिरे पर नमक लगाकर उसे रगड़ा जाता है। ठीक उसी प्रकार कटु बोल बोलने वाले के लिए भी यह सजा उपयुक्त हैं।
39 दोहा – जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में यह कहना चाहते है की जो लोग अच्छे और सच्चे स्वभाव के होते है उनपर बुरी संगत का भी कोई असर नहीं पड़ता। जैसे चंदन के पेड़ पर जहरीला साँप कितना भी लिपटा रहे, लेकिन साँप के जहर का कोई असर नहीं पड़ता चंदन पर। क्योंकि चंदन अपनी महक के स्वभाव को पसंद करता है दूसरों के स्वभाव को नहीं।
40 दोहा – वरू रहीम कानन भल्यो वास करिय फल भोग।
बंधू मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग।
अर्थ – रहीम जी ने इस दोहे में बड़े मार्मिक शब्दों का प्रयोग किया है और कहा है निर्धन होकर अपने सगे-संबंधियों या दोस्तों के पास रहने से अच्छा है आप जंगल में जाके इज्ज़त से रहे और फल-फूल खाकर अपना जीवन व्यतीत करे।
Rahim Das Ke Dohe in Hindi - रहीम के दोहे हिंदी अर्थ सहित 


41 दोहा – रहिमन जिह्वा बाबरी, कह गई सरग-पताल।
आपु तु कहि भीतर गई, जूती खात कपाल।
अर्थ – रहीम जी कहते है मनुष्य को हमेशा तौल-मौल कर ही बोलना चाहिए। क्योंकि यह जीभ तो पागल है हमेशा कटु बोलने के लिए तैयार रहती है और कई बार तो यह मुँह से कटु वचन बुलवाकर खुद तो मुँह में छिप जाती है। परिणाम बिचारे सिर को भुगतना पड़ता है क्योंकि लोग तो सिर को ही जूती मारते हैं और जीभ इसका मजा लेती हैं।
42 दोहा – कही रहिम सम्पति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
विपति कसौटी जे कसे, तेई सांचे मीत।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में यह कहना चाह रहे है जब तक हमारे पास धन-दौलत होती है तब तक बहुत से रिश्ते-नाते और मित्रों का भी साथ होता हैं। लेकिन मुसीबत के समय बिना स्वार्थ के जो हमारा साथ देता है वो ही सच्चा दोस्त होता हैं। इसलिए कभी-कभी विपत्ति का समय भी जरूरी होता हैं।
43 दोहा – राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ।
जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ।
अर्थ – रहीम जी कहते है अगर राम सोने के हिरण के पीछे नहीं जाते तो सीता को रावण हर के लंका नहीं ले जा पाता। आगे कवि यह कहते है होनहार अपने बस में होती तो ऐसा कदापि नहीं होता। लेकिन होनी को तो घटित होना था। क्योंकि भविष्य में क्या होने वाला है यह अपने हाथ में नहीं हैं। कई होनी पर हमारा बस नहीं चलता। इसलिए जो होना है वो होकर रहेगा। इसमें किसी का दोष नहीं।
44 दोहा – धनि रहीम जल पंक को, लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय।
अर्थ – रहीम जी कहते है कीचड़ का पानी विशाल समुंद्र के पानी से कई गुणा श्रेष्ठ है। क्योंकि कीचड़ युक्त पानी से कई प्यासे जीवों की प्यास तृप्त होती है और समुंद्र के अपार पानी के पास अगर कोई प्यासा खड़ा भी हो जाए तो भी समुंद्र उसकी प्यास को शांत नहीं कर सकता। कहने का तात्पर्य यह है जो व्यक्ति इस संसार में किसी के कुछ भी काम नहीं आते वो बेकार की श्रेणी में आते है फिर चाहे वो कितने ही संपन्न क्यों ना हो।
45 दोहा – रहिमन निज संपति बिना, कोउ ना बिपती सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहीं रवि सके बचाय।
अर्थ – रहीम जी कहते है जब विकट परिस्थिति आती है तब व्यक्ति की कमाई गई या बचाई गई संपति ही उसकी सबसे बड़ी सहायक बनती हैं। क्योंकि उस मुश्किल घड़ी में कोई सहायक नहीं बनता और यह दुनिया की रीत हैं। जैसे तालाब का जल सूखने पर सूर्य भी कमल को सूखने से नहीं बचा सकता। कहने का भाव यह है की आमदनी इतनी हो की आप अपनी मूल जरूरतों को पूरा कर कुछ बचा सके और बुरे हालत में किसी के आगे हाथ ना फैलाना पड़े।
46 दोहा – निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ।
पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ।
अर्थ – रहीम जी कहते है मनुष्य के हाथ में सिर्फ कर्म करना लिखा है सिद्धि का मिलना तो भाग्य के हाथ में हैं। जैसे चौपड़ के खेल में पासे अपने हाथ में होते है और दांव भी हम ही खेलते है लेकिन दांव में आएगा क्या यह अपने हाथ में नहीं हैं। इसलिए मनुष्य को अपने अच्छे कर्म पर ध्यान देना चाहिए। फल की चिंता में अपने कर्मो को खराब मत कीजिए।
47 दोहा – थोथे बादर क्वार के, ज्यो रहीम छहरात।
धनी पुरुष निर्धन भये, करे पाछिली बात।
अर्थ – रहीम जी इस दोहे में यह कहना चाहते है की आश्विन माह के जो बादल होते है वो सिर्फ गरजते है बरसते नहीं। क्योंकि इस माह के बादलों में पानी नहीं होता। ठीक इसी प्रकार अमीर व्यक्ति जब गरीब हो जाता है तो वो अपनी अमीरी का अहंकार त्याग नहीं पाता और अपने बीते दिनों को याद करके झूठा घमंड करता रहता हैं। लेकिन मनुष्य को हर परिस्थिति में एक जैसा और अनुकूल व्यवहार करना चाहिए।
48 दोहा – रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय।
भीति आप पै डारि के, सबै पियावै तोय।
अर्थ – रहीम जी कहते है हर उस व्यक्ति के व्यवहार की सराहना होनी चाहिए। जो घड़े और रस्सी की जुगलबंदी की तरह हो। क्योंकि घड़ा और रस्सी स्वयं खतरा उठाकर दूसरों को जल पिलाते है। जबकि कुएँ में घड़े के जाते वक्त रस्सी छूट सकती है या घड़ा फुट सकता है। दोनों ही स्थिति में घड़े और रस्सी को ही जोखिम होता है पानी पीने वाले को नहीं।
49 दोहा – रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुहँ स्याह।
नहीं छलन को परतिया, नहीं कारन को ब्याह।
अर्थ – रहीम जी कहते है तनिक सुख के लिए भला कौन मनुष्य अपने मुख पर कालिख पोतना पसंद करेगा? क्योंकि पराई स्त्री को ना तो अधिक समय के लिए धोखा दिया जा सकता है और ऐसा कोई कारण नहीं जो उससे विवाह किया जाए।
50 दोहा – गुन ते लेत रहीम जन, सलिल कूप ते काढि।
कूपहु ते कहूँ होत है, मन काहू को बाढी।
अर्थ – रहीम जी कहते है जब गहरे कुएँ से बाल्टी द्वारा पानी निकाला जा सकता है। तो ठीक उसी प्रकार व्यक्ति अपने अच्छे व्यवहार और मधुर वाणी से किसी के हृदय में भी स्वयं के लिए प्रेम उत्पन्न कर सकता हैं। आखिर मनुष्य का हृदय कुएँ से गहरा तो नहीं हो सकता।
कबीर जी के पश्चात रहीम जी के दोहों को ही सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली हैं। रहीम के दोहे बहुत ही प्रेरक और अर्थपूर्ण हैं जो मनुष्य जाती को अच्छे जीवन का संदेश देते हैं। इसलिए हम रहीम जी के अधिकाधिक दोहों को संकलित करने हेतु प्रयासरत हैं।
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