संत कबीर के दोहे हिंदी सार सहित - Kabir Das Ke Dohe in Hindi |
संत कबीर एक बहुत बड़े अध्यात्मिक इन्सान थे, कबीर दास जी अपने जीवन में कर्म पर विश्वास करते थे, अगर कबीर शब्द का अर्थ इस्लाम के अनुसार देखा जाए तो कबीर का अर्थ महान होता है| कबीर दास जी कभी भी जाति-पाति में भेदभाव नहीं करते थे | Kabir Das जी हमेशा अपने उपदेश में इस बात का जरुर जिक्र किया करते थे, कि अल्लाह और राम दोनों एक ही है , बस इनके दो अलग-अलग नाम है | कबीर जी के दोहे बहुत ही ज्ञानवर्धक हैं. निचे पढ़ें- Kabir Das Ke Dohe in Hindi with meaning.
Sant Kabir Das Ji का जन्म एक हिन्दू समुदाय में हुआ था, लेकिन इनका पालन-पोषण एक मुस्लिम परिवार में हुआ था | जिन्होंने इनका पालन-पोषण किया था उनका नाम नीरू और नीमा था | कबीर दास जी की प्रारंभिक शिक्षा रामानन्द जी से मिली थी | ये भी माना जाता है, कि कबीर जी रामानन्द जी सबसे प्रिय शिष्य थे | और उन्होंने अपने जीवनकाल में बहुत सारे ज्ञान को प्राप्त किया, तो आएये दोस्तों अब हम आपको कबीर दास जी के दूआरा कहे गए दोहों के बारे में बताते है, जो हर इन्सान को जानना चाहिए, और जानने के साथ-साथ अपने जीवन में भी धारण करना चाहिए –
नाम (Name) | Kabir Das ( कबीर दास ) |
जन्म (Born) | (1398 या 1440) लहरतारा , निकट वाराणसी [ ठीक से ज्ञात नहीं ] |
मृत्यु (Died) | (1448 या 1518) मगहर [ ठीक से ज्ञात नहीं ] |
पेशा (Occupation) | कवि, भक्त, सूत कातकर कपड़ा बनाना |
राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय |
संत कबीर के दोहे हिंदी सार सहित - Kabir Das Ke Dohe in Hindi
दोहा :- “जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
“मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
अर्थ:- कबीर दास जी कहना चाहते है की अपने जीवन में तो सभी लोग प्रयास करते है और वह दुनीया में सब कुछ पा सकते है और उदाहारण के लिए गोताखोर गहरे पानी में जाते है और उन्हें कुछ ना कुछ मिलता है| और कुछ लोग एसे भी होते है जो असफलता के डर से पानी के किनारे ही बैठे रहते हैं।
दोहा :- “कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह।
”देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।”
अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की जब तक यह हमारी देह है तब तक तू कुछ न कुछ यह हमे देता रहता है । जब देह धूल में मिल जायगी, तब कौन कहेगा कि ‘दो’।
दोहा :- ” देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।
” निश्चय कर उपकार ही, जीवन का फन येह।
अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की मरने के बाद आपसे कौन देने को कहेगा ? इसलिए जब तक जीवन है तब तक आपको परोपकार करना चाहिए| यही जीवन का सच्चा फल है
दोहा :- “या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत।
“गुरु चरनन चित लाइये, जो पुराण सुख हेत।
अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की इस दुनिया में दो दिन का ही मोह है इसलिए इससे मोह ना रखे| और भगवान की चरणों में मन लगाओ, जो पूर्ण सुख देने वाला है
दोहा :- “ऐसी बनी बोलिये, मन का आपा खोय।
“औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय।
अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की मनुष्य को अपने मन से घमण्ड को मिटाकर| ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो चाहिए जिससे दुसरे लोग सुखी हो, और आपको भी सुख की अनुभूति हो.
Kabir Das Ke Dohe in Hindi
दोहा :-“गाँठी होय सो हाथ कर, हाथ होय सो देह।
“आगे हाट न बानिया, लेना होय सो लेह।
अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की जो गाँठ में बाँध रखा है, उसे हाथ में ला, और जो हाथ में हो उसे आप परोपकार में लगाईए | और नर-शरीर के पश्चात् इतने बड़े बाजार में-कोई व्यापारी नहीं है, लेना हो सो यही ले-लो।
दोहा :- “धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर।
“अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर|
अर्थ:- कबीर दास जी कहना चाहते है की दान धर्म करने से घन नही घटता है उदाहरण के लिए नदी सदैव बहती है लेकिन उसका जल नही घटता है और आप भी धर्म करने देख सकते है
दोहा:- “कहते को कही जान दे, गुरु की सीख तू लेय।
“साकट जन औश्वान को, फेरि जवाब न देय।
अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की जो गलत बात करता है उसे करने दो, तुम गुरु की ही शिक्षा धारण करो दुष्टोंतथा कुत्तों को उलट कर उत्तर नही देना चाहिए|
दोहा :- “कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ सिध्द को गाँव।
”स्वामी कहै न बैठना, फिर-फिर पूछै नाँव।
अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की जो साघू अपने आप को सर्वोपरि मानते है उनके स्थान पर भी मत जाओ क्योंकि स्वामीजी ठीक से बैठने तक की बात नहीं करते है और बार बार आपका नाम पूछते है|
दोहा :- “ साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
“सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की इस दुनिया में ऐसे सज्जनों की जरूरत है उदाहरण के लिए अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है। और जो उसमे अच्छा होता है उसे रखता है और जो निरर्थक को उड़ा देता है.
संत कबीर के दोहे हिंदी सार सहित
दोहा :- ” तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय|
“कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
अर्थ:- कबीर दास जी कहना चाहते है की छोटे से तिनके की भी नींदा नही करनी चाहिए चाहे वह तुम्हारे पांवों के नीचे दबा हो क्योंकि कभी वह तिनका उड़कर तुम्हारे आँखों में भी जा सकता है और गहरी पीड़ा दे सकता है|
दोहा :- “धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
“माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की अपने मन में धीरज रखने से सब कुछ सम्भव हो सकता है अगर कोई माली किसी भी पेड़ को सौ घड़े पानी से क्यों ना सींच ले| लेकिन फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा|
दोहा :- “दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त|
“अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।
अर्थ:- कबीर दास जी कहना चाहते है की मनुष्य का यह स्वभाव है की वह दूसरों के दोष देख कर हंसता है लेकिन अपना दोष याद नही आते है जिनका न आदि है न अंत।
दोहा :- बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
अर्थ:- कबीर दास जी कहना चाहते है की यदि कोई व्यक्ति सही तरीके से बोलना जानता है तो उससे पता है की उसकी वाणी अमूल्य है इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।
दोहा:- अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की न तो अघिक बोलना अच्छा होता है और न ही कम बोलना और न ही जरुवत से ज्यदा चुप रहना ठीक है उदाहारण के लिए ना ही ज्यदा वर्षा ठीक है ना ही ज्यदा घूप ठीक है.
Kabir Das Ke Dohe in Hindi with meaning
दोहा :- “कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर|
”काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।
अर्थ :- कबीर दास जी इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं की सबसे भला हो और संसार में कोई दोस्त ना हो तो कोई दुश्मन भी ना हो
दोहा :-”कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई।
”बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।
अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है कि समुद्र की लहर में मोती आकर बिखर गए लेकिन बगुला उनका भेद नहीं जानता लेकिन हंस चुन चुन कर खा रहा है इसका मतलब है की किसी भी वस्तु का महत्व जानकार ही जानता है।
दोहा :- “बन्दे तू कर बन्दगी, तो पावै दीदार।
“औसर मानुष जन्म का, बहुरि न बारम्बार।
अर्थ :- कबीर दास जी कहना चाहते है की हे दास तू सद्गुरु की सेवा कर और तब तेरा स्वरूप-साक्षात्कार हो सकता है और फिर से क्या पता की मनुष्य का जन्म बार बार ना मिले
EmoticonEmoticon